शर्म संकोच के चलते-अपनी बीमारी बताओगे नहीं तो मुक्ति कैसे पाओगे?
शर्म संकोच के चलते-“अपनी बीमारी बताओगे नहीं तो मुक्ति कैसे पाओगे?”
वर्तमान दौर में जो लोग शर्म-संकोच के चलते अपनी तकलीफों को छिपाकर लाइलाज बना रहे हैं, ऐसे लोगों के लिये लिये ये लाइनें बहुत सटीक हैं।
‘बोलोगो नहीं तो कोई सुनेगा कैसे? लिखोगे नहीं तो कोई पढेगा कैसे?’
मैं वर्षों से इन पंक्तियों को अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के संदर्भ में लिखता और बोलता आया हूं। मगर वर्तमान में जो लोग आत्मघाती चुप्पी साधकर अपने आप के साथ और अपनों के साथ अन्याय तथा अत्याचार कर रहे हैं, उन्हें बोलने और लिखने का प्रोत्साहित करने हेतु इन्हीं पंक्तियों का सहारा लेना पड़ रहा है!
मुझे यह समझ में नहीं आता कि गुदाद्वार या प्रजजन अंगों में किसी प्रकार की तकलीफ है तो उसे छिपाने की क्या जरूरत है? गुदाद्वार और यौनांग भी तो हमारे शरीर के ही अंग हैं। यदि गुदा से रक्त आता है, गुदाद्वारा बाहर आता है या गुदा में मस्से हैं तो हैं, ऐसी समस्याओं से करोड़ों लोग पीड़ित हैं। इन सभी समस्याओं के सभी चिकित्सा पद्धतियों में कुछ न कुछ उपचार भी उपलब्ध हैं। ऐसे में इन समस्याओं को लेकर इतना शर्म-संकोच क्यों?
इसी प्रकार से हम सब जानते हैं कि संसार के संचालन के लिये पति-पत्नी के मध्य यौन सम्बन्ध अपरिहार्य है। यौन सम्बन्धों की सफलता के लिये पति-पत्नी, अर्थात दोनों के तन और मन में यौनाकांक्षा अपरिहार्य है। यदि दोनों में से किसी एक में भी किसी प्रकार की शारीरिक या मानसिक विकृति है, तो दोनों का यौन जीवन निरर्थक है।
यही नहीं यदि स्त्री या पुरुष को किसी प्रकार की यौन तकलीफ है। जैसे पुरुषों में उत्तेजना का अभाव, अधूरी उत्तेजना, संसर्ग के दौरान बीच में ही उत्तेजना का समाप्त या कम हो जाना, कामुक दृश्य देखने या कल्पना करने से स्वत: वीर्यपात हो जाना या संसर्ग के शुरू में या अधबीच में ही वीर्यस्खलन हो जाना, वीर्य का पतलापन या अल्पशुक्राणुता इत्यादि! इसी तरह से स्त्रियों में श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर, संसर्ग के दौरान यौनांगों में खिंचाव और असहनीय दर्द, छिलन, अत्यधिक शिथिलता, माहवारी में स्त्राव की कमी या स्त्राव की अधिकता, दर्दनाक माहवारी, अण्डा का नहीं बनना या अन्य कोई यौन समस्या?
ऐसी सभी समस्याओं के कारण जहां दाम्पत्य जीवन में नीरसता और खटास पैदा होती देखी जा सकती है, जिससे पुरुषों में नपुसंकता तथा स्त्रियों में फ्रिजडिटी या हिस्टीरिया की मनोस्थिति निर्मित होती है, वहीं इसी कारण पति-पत्नी दोनों सहित सम्पूर्ण परिवार में तनाव, क्लेश, घुटन और अवसाद की स्थिति बनती देखी जा सकती है। पति-पत्नी में से दोनों को या किसी एक को माइग्रेन, पाचन तंत्र की कमजोरी, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, मुंह में छाले, गठिया, आंतरिक अल्सर या ट्यूमर, रक्तचाप वृद्धि या कमी, गैस, ऐसीडिटी, फैटी लीवर, लीवर संक्रमण, किडनी संक्रमण, किडनी या पित्ताशय में पथरी बनना, पक्षाघात, हृदयाघात इत्यादि अन्यान्य शारीरिक तथा मानसिक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।
क्या गुदाद्वार और प्रजनन अंगों से सम्बन्धित तकलीफों को यह सब जानने और समझने के बावजूद भी शर्म-संकोच के पर्दे में छिपाये रखना बुहत जरूरी है? मैं कहूंगा बिल्कुल भी नहीं। जैसे जुकाम, खांसी, बुखार या अन्य बीमारियों का उपचार लिया जाता है, उससे भी कहीं अधिक शीघ्रता से इन तकलीफों का उपचार लेना चाहिये।
इस छोटे से लेख को पढकर कितना अच्छा हो कि जिस किसी भी स्त्री या पुरुष को गुदाद्वार या प्रजजन अंगों से जुड़ी ऐसी कोई भी छोटी या बड़ी समस्या है, वह तुरंत अपने नजदीकतम तथा विश्वसनीय डॉक्टर को बेहिचक अपनी समस्या बतायें और उनसे समुचित उपचार प्राप्त करें।
अंतिम वाक्य-“अपनी बीमारी बताओगे नहीं तो मुक्ति कैसे पाओगे?”
आदिवासी ताऊ डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, हेल्थकेयर वाट्सएप नं.:8561955619, 16.03.2020.